ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह होते हैं जिनकी लिंग पहचान उनके जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाती। यह व्यक्ति अक्सर खुद को पुरुष या महिला के बजाय किसी तीसरे लिंग, अस्पष्ट लिंग, या किसी अन्य लिंग के रूप में पहचानते हैं।

ट्रांसजेंडर संगठनों के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति व्यक्ति की अंतरात्मा की पहचान होती है, न कि उनके शारीरिक लक्षणों या जननांगों के आधार पर। यह एक व्यक्तिगत, अंतरात्मिक, और अनुभवात्मक पहचान है।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान उनके जन्म के समय की लिंग पहचान से भिन्न हो सकती है। कुछ ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपने शारीरिक विशेषताओं को उनकी आत्मिक लिंग पहचान के अनुसार परिवर्तित करने के लिए हार्मोन चिकित्सा या सर्जरी का उपयोग करते हैं, जबकि अन्य ऐसा नहीं करते।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का समाज में स्वीकारण अक्सर कठिनाईयों और विरोधाभासों का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, वे अक्सर सामुदायिक समर्थन, अधिकार, और सम्मान के लिए संघर्ष करते हैं।

भारत में, ट्रांसजेंडर समुदाय को “हिजड़ा” या “खवाजा सरा” के नाम से जाना जाता है। यह समुदाय सदियों से अस्तित्व में है और विशेष धार्मिक और सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करता है। हालांकि, यह समुदाय सामाजिक विकलांगता, भेदभाव, और हिंसा का सामना कर रहा है।

2014 में, भारत का सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंदर व्यक्तियों को तीसरा लिंग मान्यता दी। इस निर्णय ने इस समुदाय के अधिकारों को मजबूती दी और उन्हें शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार दिलाने में मदद की।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का समाज में उनका स्वीकारण और उनकी उपेक्षा करने की बात आज की दिनचर्या का हिस्सा बन गयी है। उन्हें समानता, सम्मान और अधिकारों की गारंटी होनी चाहिए, जैसा कि हम सभी व्यक्तियों के लिए चाहते हैं